Sunday, April 20, 2008

अजेय

.........मेरे मायालोक कि विभूति बिखर जाएगी।
किरण मर जाएगी।
लाल होके झलकेगा भोर का आलोक-
डर का रहस्य ओठ सकेंगे न रोक ।
प्यार की नीहार बूँद मूक झर जायगी।
इसी बीच किरण मर जाएगी।
ओप देगा व्योम स्लथ कुहासे का जाल,
कडी-कडी छिन्न होगी तारकों की झाल।
मेरे मायालोक की विभूती बीखर जायेगी।
इसी बीच किरण मर जायेगी।
नदी के द्वीप (पृ.151)
अजेय

2 comments:

rajeev said...

nice collection pankaj....... :)

rajeev said...
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